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प्रदर्शनकारी बोले-जमीन अराजीराज, ट्रस्टी बोले- सब जानते हैं रियासतकाल से यह है आसोपा धोरा

  • आसोपा धोरा किसका! उपसरपंच-कांग्रेस सड़क पर, छह न्याति समाज आसोपा परिवार से मिला
  • प्रदर्शनकारी बोले-जमीन अराजीराज, ट्रस्टी बोले, सब जानते हैं रियासतकाल से यह है आसोपा धोरा
  • भूमाफियाओं की नजर होने की आशंका
  • आरोप 600 बीघा जमीन में से 250 बीघा पर हो चुके हैं कब्जे

RNE Bikaner.

कुछ समय पहले तक ‘उदयरामसर के धोरे‘ ये तीन शब्द बोलते ही बीकानेरवासी के जेहन में एक तस्वीर उभरती। यह तस्वीर होती रेत के ऊंचे टीले पर बने शिव मंदिर की। दक्षिणमुखी पातालस्पर्शी हनुमान मंदिर की। हजारों पेड़ों पर चहकते सैकड़ों पक्षियों के कलरव और अनुपम रेगिस्तानी प्राकृतिक सौंदर्य की।

हालांकि अभी भी कमोबेश तस्वीर के अधिकांश हिस्से बचे हुए हैं लेकिन इसे बदल देने के प्रयास जोर-शोर से चल रहे हैं। दावा किया जा रहा है जो आसोपा ट्रस्ट इस जमीन का मालिकाना हक मान रहा है अब यह जमीन उसकी नहीं रही। इसको अराजीराज घोषित कर दिया गया है। ऐसे में ट्रस्ट का आधिपत्य हटना चाहिये। यह मांग करने वालों मंे इसी गांव के उपसरपंच हेमंत यादव और गांव के उनके समर्थक तो है ही उनके साथ देहात कांग्रेस के अध्यक्ष बिशनाराम सियाग, कांग्रेस नेता सुभाष स्वामी, शिवलाल गोदारा, पार्षद आनंदसिंह सोढ़ा, गणेशदान बीठू आदि भी शामिल है। इन नेताओं ने गुरुवार को बाकायदा जुलूस निकाला। गांधीपार्क से बीकानेर कलेक्ट्रेट होते हुए संभागीय आयुक्त कार्यालय तक पहुंचे, एक ज्ञापन भी दिया।

ये बोले प्रदर्शनकारी:

हेमंत यादव ने आरोप लगाया कि 30 अगस्त 1982 को उपखंड अधिकारी उत्तर बीकानेर की मिलीभगत से इस जमीन का फैसला आसोपा आश्रम ट्रस्ट के पक्ष में हुआ। बीकानेर कलेक्टर ने 13 अप्रैल 2011 को भूमि का रेफरेंस राजस्व मंडल को कर दिया।

इसके साथ ही भूमि का इंतकाल राज्य की भूमि के रूप में दर्ज हो गया। इस मामले में 20 सितंबर यानी कल राजस्व मंडल अजमेर में तारीख पेशी है। इसमें उदयरामसर ग्राम पंचायत भी प्रार्थी है। यादव का कहना है कि ग्रामवासियों की ओर से दायर एक अपील में भी आसोपा ट्रस्ट के नाम से दर्ज खातेदारी निरस्त होकर राजकीय भूमि दर्ज हुई है। इसके बावजूद राजस्व रिकॉर्ड मंे दर्ज नहीं हुई है।

महेन्द्रसिंह शेखावत पर तारबंदी करवाने का आरोप:

उपसरपंच यादव ने आरोप लगाया है कि एक सरकारी कर्मचारी महेन्द्रसिंह शेखावत इस जमीन पर ट्रस्ट के साथ मिलकर तारबंदी करवा रहा है। राजस्व बोर्ड के स्थगन आदेश के बावजूद यह तारबंदी अवैध है। आरोप यह भी लगाया गया है कि शेखावत ने खुद का कलेक्टर का खास बताते हुए धमकाया।

शेखावत ने करवाई एफआईआर, कहा- मैं नियमित दर्शनार्थी:

दूसरी ओर महेन्द्रसिंह शेखावत का कहना है, इस धोरे पर बने मंदिर का नियमित दर्शनार्थी हूं। यहां आते-जाते ट्रस्ट के लोगों से मुलाकात होती रही। इस धोरे और ट्रस्ट के विषय में थोड़ी-बहुत जानकारी है लेकिन यहां दर्शनार्थी और जनहित में कुछ काम करता हूं। जमीन कब्जे करने से कोई लेना-देना नहीं है। शेखावत ने बताया कि उन्होंने यादव के खिलाफ एक रिपोर्ट भी दर्ज करवाई है।

छह न्याति समाज ट्रस्टी परिवार से मिलने पहुंचा:

छः न्याति समाज प्रतिनिधि ट्रस्टी परिवार से मिले

इस बीच छह न्याति ब्राह्मण समाज के प्रतिनिधि पाराशयर नारायण शर्मा के साथ ट्रस्टी परिवार से मिलने पहुंचे और पूरे मामले की जानकारी ली। ट्रस्टी परिवार ने रियासतकाल में महाराजा गंगासिंहजी के बुलावे पर आये डा.असोपा की ओर से बंगाल में अपनी पूरी संपत्ति बेचकर यहां सेवा के लिए आने से लेकर अब तक की स्थितियां बताई। बताया कि सौ साल पहले जब टीबी की महामारी फैली तो वैद्य भैरोदत्त आसोपा को बुलाया था। उन्हांेने यहां पहला टीबी सेनेटोरियम बनाया। उस जमाने में टीबी का इलाज यहीं होता था। लगातार चिकित्सा सेवा जारी रखी तो उन्हें यह जमीन बख्शीश में दी गई। ऐसे में आसोपा परिवार ने इसे प्राकृतिक सौंदर्य के साथ धार्मिक, आध्यात्मिक स्थल और चिकित्सकीय व मानवीय सेवा का केन्द्र बनाये रखने का निर्णय लिया। इस जमीन का कभी भी व्यावसायिक उपयोग या निजी हित में उपयोग करने के बारे में नहीं सोचा। अब तक वैसा ही किया जा रहा है।

लंदन से ट्रस्टी सविता ने बताये हालात :

आसोपा ट्रस्टी

आसोपा ट्रस्ट की ट्रस्टी सविता लंदन में रहती है। ‘रूद्रा न्यूज एक्सप्रेस’ से बातचीत में बोली, यह हमारे पूर्वजों का स्थापित पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट है। दो महीने पहले भारत आई तो देखा कि आस-पास के भूमाफिया अच्छा काम नहीं हेाने दे रहे। पेड़ कट जाते हैं। वन्यजीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। हम मंदिरों का रख-रखाव करते हैं। हमारा चिकित्सा के प्रति रूझान रहा है। फ्री चिकित्सा उपलब्ध करवाते हैं। मंदिर की रंगाई-पुताई नहंी करवाएंगे तो यह जीण-शीर्ण हो जाएगा। पुराने सेनेटोरियाम का रख-रखाव किया। पेड़ लगवाये। मुझे नहीं पता था कि इससे इतने व्यथित हो जाएंगे भू माफिया। मैं हतप्रभ और आश्चर्यचकित हूं। हमने खुद अपने जेब से काम किया। चिकित्सालय बनवाया और सरकार को दे दिया। सीएमएचओ को एप्लीकेशन दी है।

कैसा धोरा, क्या है ट्रस्ट :

अब तक जो जानकारी सामने आई है उसके मुताबिक आसोपा धोरा उदयरामसर गांव के पास वह जगह है जहां 1920 में वैद्य भैरोदत्त आसोपा ने टीबी सेनेटोरियम यानी आइसोलेशन हॉस्पिटल खोला था। वे महाराजा गंगासिंह के व्यक्तिगत वैद्य भी थे और धोरे पर आमजन का निशुल्क उपचार करते थे। बाद उन्हें यह जमीन यादव परिवार की ओर से बख्शीश दी गई तो उनके परिवार ने ट्रस्ट बना दिया और तय किया कि इस जमीन का व्यक्तिगत हित में उपयोग नहीं करेंगे। व्यावसायिक उपयोग नहीं करेंगे और प्राकृतिक सौंदर्य बरकरार रखते हुए पर्यावरण संरक्षण में उपयोग करेंगे। कुछ साल पहले तक यहा टिब्बा स्थिरीकरण परियोजना में काजरी के साथ मिलकर लगभग 60 हजार पेड़ लगाये गये। यह प्रोजेक्ट अब पूरा हो चुका है। बताया जाता है कि इस बीच धोरे के आस-पास से मिट्टी उठाने और जमीन पर कब्जा करने के प्रयास शुरू हो गये। इसी बीच इस धोरे के बीच में से सड़क भी निकली। इसी दौरान जमीन को अराजीराज करने का विवाद भी हुआ जिसकी सुनवाई राजस्व बोर्ड में चल रही है।

अब क्यों हो रहा है विवाद:

ऐसा माना जा रहा है कि यह जमीन अब शहर के समीप और प्राइम लोकेशन पर है। आस-पास कई कॉलोनियां, फार्म हाउस स्कीम कट गये हैं। कुछ अवैध बस्तियां होने की भी जानकारी मिली है। ऐसे में जमीन अराजीराज होती है तो इसके रख-रखाव और उपयोग का अधिकार ग्राम पंचायत को मिल सकता है। इसके बाद जमीन के इतर उपयोग के बारे मंे आगे की कार्रवाई भी हो सकती है।